महिलाओं के प्रति हिंसा का समाजशास्त्रीय विश्लेषण
Abstract
वर्तमान वैश्विक परिप्रेक्ष्य में महिलाओं की एक भूमंडलीय समस्या है, जो विश्व के सभी देशों में एक चिंतनीय ज्वलंत विषय बन गयी है। आज विश्व का कोई भी समाज दावे के साथ कहने की स्थिति में नहीं है कि उसके यहां महिलाओं के विरुद्ध घरेलू हिंसा नहीं हो रही है। मानव अधिकारों का यह सर्वाधिक व्यापक उल्लंघन है, जिसके द्वारा महिलाओं को सुरक्षा, सम्मान, समानता, आत्म-उत्कर्ष और बुनियादी आजादी के अधिकारों से वंचित रखा जाता है। महिलाओं के विरुद्ध हिंसा के विश्वव्यापी विस्तार के सामने संस्कृतियों, वर्गों, शिक्षा, आय, जातीयता और आयु की किसी भी सीमा का कोई महत्व नहीं है। यदि कोई अंतर है तो वह केवल देशों और क्षेत्रों में विद्यमान हिंसा की प्रवृत्तियों में ही है। महिलाओं के विरुद्ध घरेलू हिंसा के घृणित और जघन्यतम तरीकों के कारण विश्वभर के समाजशास्त्री परिवार, संस्था के उद्देश्यों में आये इस पतन के प्रति बेहद चिंतित हैं। घरेलू हिंसा एक वैश्विक सामाजिक मुद्दा बन गया है, जिसमें महिलाएं अपनी नागरिक अधिकारों व हक से वंचित रह जाती हैं, जिससे उनमें बराबरी का दर्जा पहचान, प्रतिष्ठा व क्षमता पर गलत असर पड़ता है। उन्हें मायके व ससुराल कहीं भी अधिकार प्राप्त नहीं होता है। इसमें शारीरिक, मानसिक, आर्थिक, सामाजिक, दृश्यगत, यौन शोषण आदि शामिल हैं। घरेलू हिंसा को अंजाम देने वाला घर का कोई रिश्तेदार होता है, चाहे वह पति हो या सास-स्वसुर ननद-देवर या कई अन्य रिश्तेदार। घरेलू हिंसा की शिकार गरीब महिलाएं ही नहीं बल्कि शहरी, शिक्षित व आर्थिक रूप से संपन्न व स्वतंत्र सभी शामिल हैं।
कीवर्ड- वैश्विक परिप्रेक्ष्य, महिलाओं के प्रति हिंसा, ज्वलंत विषय, समाजशास्त्रीय विश्लेषण
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